गुजरात की कुल 182 विधानसभा सीटों (Gujarat Assembly) में से भारतीय जनता पार्टी (BJP) को अकेले 156 सीटों पर जीत मिली है. जो सभी मायनों में ऐतिहासिक है. जब नरेंद्र मोदी ख़ुद गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब भी उन्होंने ऐसी जीत की कल्पना नहीं की होगी. फिर ऐसा क्या हुआ कि गुजरात में वो हो गया जिसकी कल्पना बीजेपी ने भी नहीं की थी.
तो क्या यह मान लिया जाए कि पीएम मोदी का जादू अपने चरम पर है. लेकिन यह बात तो हमलोग 2014 के बाद से सभी चुनावों के बाद न्यूज़ चैनलों पर सुन ही लेते हैं. क्या इस बार भी बस इतनी सी ही बात है या कहानी कुछ और ही है? गुजरात चुनाव (Gujarat Election), हिमाचल चुनाव (Himachal Election) और दिल्ली नगर निकाय चुनाव (MCD) तीनों के नतीजे यह बताते हैं कि पीएम मोदी का स्टारडम बरकरार है.
आप सोच रहे होंगे कि जीत तो सिर्फ गुजरात में मिली है, लेकिन यहां पर बार-बार मैं पीएम मोदी के स्टारडम का ज़िक्र क्यों कर रहा हूं. दरअसल इन चुनावों ने पीएम मोदी के स्टारडम की तस्दीक तो की ही है, साथ ही ये भी बताया है कि पीएम मोदी आज भी लोगों के दिलों की धड़कन क्यों बने हुए हैं? जानना चाहेंगे कैसे? तो आख़िर तक पढ़ते रहिए, बीच में थोड़ा डाटा का ज़िक्र करूंगा, संभव है आपको बोरियत हो लेकिन पूरी कहानी को वैज्ञानिक तरीके से समझाने के लिए इस डाटा को समझना बेहद ज़रूरी है.
गुजरात चुनाव के नतीजों का विश्लेषण
सबसे पहले गुजरात चुनाव के नतीजों का विश्लेषण कर लेते हैं. Election Commission यानी कि चुनाव आयोग के आँकड़ों के मुताबिक़ जिन लोगों ने मतदान किए, अगर सभी को 100 प्रतिशत मान लेते हैं, तो इनमें से 52.5% वोट अकेले बीजेपी को मिले. वहीं कांग्रेस को 27.3%, आम आदमी पार्टी (AAP) को 12.9%, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM को 0.29% और अन्य को 7.01% वोट मिले.
अगर बीजेपी के अलावा बाक़ी अन्य पार्टियों को जोड़ भी दें तो सभी दलों का मत प्रतिशत 47.5% ही होता है. सुनने में लगता है जैसे कि यह लड़ाई दो दलों की हो, लेकिन असल में दूसरी टीम की तरफ़ से कई पार्टियां हैं. गुजरात में पीएम मोदी की इस ऐतिहासिक जीत का राज़ भी यहीं छिपा है. यानी कृपा यहीं अटकी है. कैसे? बताता हूं.
आपने गुजरात में पीएम मोदी को यही कहते सुना होगा कि उनकी असल लड़ाई कांग्रेस से है. बीजेपी के अन्य नेता भी विधानसभा की लड़ाई बीजेपी-कांग्रेस की ही बताते थे. यह वही कांग्रेस पार्टी है, जिसको पीएम मोदी और टीम पूरे देश में घूम-घूम कर खपा हुआ बता चुके हैं.
इतना ही नहीं कांग्रेस सांसद राहुल गांधी (जिसे पार्टी का चेहरा माना जाता है) को ‘ख़राब फ़सल’, ‘पप्पू’ और ना जाने क्या-क्या बोलकर उन्हें मज़ाक़ का पात्र बना दिया गया है. नतीजा यह हुआ कि अब लोग कांग्रेस को ही सीरीयसली नहीं लेना चाहते. ख़ासकर गुजरात में. क्योंकि नरेंद्र मोदी वहां के बेटे हैं जो प्रधानमंत्री बनकर उनके प्रदेश का ही गौरव बढ़ा रहे हैं.
यानी कि मामला कुल मिलाकर गुजराती अस्मिता का हो जाता है. ऐसे में AAP और AIMIM जैसी पार्टियों ने भी लोगों को भटकाया. लोगों को समझ में नहीं आया कि बीजेपी का विकल्प किसे माना जाए? जो मोदी से बहुत नाराज़ थे उनका वोट अलग-अलग पार्टियों में बंट गया.
वहीं कई ऐसे लोग जो मोदी के काम से भले ख़ुश ना हो लेकिन गुजराती होने की वजह से उनका विरोध भी नहीं करना चाहते, उन्होंने मतदान नहीं करने का विकल्प चुना. यही वजह रही कि इस बार गुजरात चुनाव में मत प्रतिशत कम रहा. यानी उन्हें मोदी पसंद तो नहीं है लेकिन किसे वोट करें, यह भी समझ नहीं आ रहा. अंततः उन्होंने ख़ुद को प्रक्रिया से ही अलग कर लिया. यही वजह रही कि 2022 के चुनाव में मत प्रतिशत 5% के क़रीब कम रहा.
कांग्रेस के वोट में लगी सेंध!
2022 में गुजरात चुनाव के फ़र्स्ट फ़ेज़ में मतदान प्रतिशत 63.31% रहा जो 2017 के चुनाव में 67.23% था. वहीं सेकेंड फ़ेज़ में इस बार मत प्रतिशत 65.30% रहा जो 2017 के चुनाव में 68.70% था. यानी हर तरफ़ से कांग्रेस के वोट में ही सेंध लगी. यही वजह रही कि गुजरात में वह हो गया जो बीजेपी के 27 सालों के इतिहास में कभी भी नहीं हुआ था. यहां तक कि गुजरात में कांग्रेस के 35 साल के राज में भी ऐसी जीत देखने को नहीं मिली थी.
कांग्रेस ने 1985 के विधानसभा चुनाव में माधव सिंह सोलंकी की अगुवाई में 149 सीटें जीती थी. जबकि बीजेपी ने साल 2002 में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में 127 सीटें जीती थी. यानी कुल मिलाकर गुजरात में मामला स्टारडम से ज़्यादा गुजराती अस्मिता, बीजेपी के विकल्प में कंफ़्यूज़न और लोगों की हताशा रही. अगर कांग्रेस को सीधे-सीधे प्रदेश में विकल्प माना गया होता तो नतीजे हिमाचल जैसे हो सकते थे.
हालांकि हिमाचल में प्रत्येक साल सरकार बदलने का ट्रेंड भी रहा है. कहते हैं पहाड़ों में लोगों को रोटी सेंकने का हुनर आता है. वे रोटी को दोनों साइड से अच्छे से पकाते् हैं और सरकार को भी. यहां पर लोगों ने बीजेपी के विकल्प के तौर पर कांग्रेस को ही देखा. हालांकि कांग्रेस नेतृत्व को ध्वस्त करने की तकनीक ने यहां भी असर दिखलाया और वोट प्रतिशत का अंतर बीजेपी की तुलना में पहले के ट्रेंड के मुक़ाबले बेहद कम रहा.
हालांकि पहाड़ों में आबादी कम होती है लेकिन तब भी वोट प्रतिशत में 4-5 प्रतिशत का अंतर तो रहता ही है. हिमाचल में कुल 68 विधानसभा सीटें हैं. जिनमें से कांग्रेस के खाते में कुल 40 सीटें गई हैं. वहीं 2017 में 44 सीटें जीतने वाली बीजेपी को महज़ 25 सीटों से संतोष करना पड़ा. बीजेपी का काम इस बार उनके बाग़ी नेताओं ने भी ख़राब किया. जो कुल 21 सीटों पर बीजेपी को ही चुनौती दे रहे थे.
हिमाचल में कांग्रेस को 43.9% वोट मिले, जबकि बीजेपी को 43% वोट मिले. यानी अगर मोदी का स्टारडम होता तो हिमाचल में ना तो बाग़ी फ़ैक्टर चलता और ना ही इतने कम मार्जिन से उनकी हार हुई होती. जबकि पीएम मोदी ने हिमाचल वासियों से अपील की थी कि अगर प्रदेश में बीजेपी को जीत नहीं मिली तो कांग्रेस नरेंद्र मोदी को केंद्र में काम नहीं करने देगी. क्या एक स्टार के इतनी बड़ी अपील के बाद भी बीजेपी के हार का सवाल उठता है?
दिल्ली नगर निकाय चुनाव
अब आख़िर में बात दिल्ली नगर निकाय चुनाव की करते हैं. यहां पर AAP ने BJP की 15 सालों की बादशाहत को ख़त्म कर दिया. यहां पर जीत दर्ज करने के लिए बीजेपी ने क्या-क्या नहीं किया. इसी साल मार्च महीने में केंद्रीय कैबिनेट ने दिल्ली MCD के एकीकरण पर मुहर लगाई थी.
एकीकरण के बाद वार्डों की संख्या 272 से घटकर 250 कर दी गई. इसमें आम आदमी पार्टी को 134, बीजेपी को 104, कांग्रेस को 9 सीट मिली हैं. MCD में पिछले 15 सालों से रहने वाली बीजेपी के पास काम बताने के लिए कुछ भी नहीं था. अगर कुछ था तो मोदी का चेहरा और केजरीवाल के ख़िलाफ़ विधवा विलाप.
इन सभी नतीजों में एक बात तो साफ़ है कि कहीं भी स्टारडम से ज़्यादा सामान्य चुनावी गणित ही है. जिसे मीडिया वाले अलग ही रूप दे रहे हैं. जहां-जहां लोगों को मोदी का विकल्प दिख रहा है, लोग अब वहां मूव करने लगे हैं.
अगर भारत जोड़ो यात्रा के बाद ‘राहुल गांधी ब्रांड’ में लोगों का विश्वास दिखा तो यह बाक़ी लोगों को भी दिखने लगेगा. बाक़ी क्षेत्रीय दलों के लिए भी अभी सुनहरा दौर है. क्योंकि लोगों के सामने बीजेपी का विकल्प दिखने की देरी है.
Last Updated on December 9, 2022 12:15 pm