80 के दशक के जापान की याद दिलाकर उदय कोटक कहना क्या चाहते हैं?

उदय कोटक ने कंपनियों को बैंकों से दूर रहने की दी सलाह
उदय कोटक ने कंपनियों को बैंकों से दूर रहने की दी सलाह

Japan economic bubble: कोटक महिंद्रा बैंक के फाउंडर उदय कोटक ने भारतीय कंपनियों को बैंकों से दूर रहने की सलाह दी है. उदय कोटक ने जापान के पुराने दिनों की याद दिलाते हुए कहा कि वह भारत की मौजूदा अर्थव्यवस्था में वही समानताएं देख रहे हैं. दरअसल जापान में, 1980 के दशक की शुरुआत में, भूमि की कीमतों में तेज वृद्धि हुई थी. इस वृद्धि के कारण, कई कंपनियों ने अपनी संपत्तियों को बेचकर ऋण लिया और इसे भूमि में निवेश किया. जब भूमि की कीमतें गिरने लगीं, तो इन कंपनियों को ऋण चुकाने में मुश्किल हुई और वे दिवालिया हो गईं. इससे जापानी अर्थव्यवस्था में मंदी आई और यह 1990 के दशक तक जारी रही. भारत में, कोरोना काल के बाद स्टॉक बाजार और रियल एस्टेट बाजार में तेजी आई है. उदय कोटक कहते हैं कि भारत बचत करने वालों के देश से निवेशकों के देश की ओर बढ़ रहा है. कई निवेशक कोविड के बाद जुड़े हैं. उन्होंने मुख्य रूप से उछाल ही देखा है. हमें 80 के दशक के जापान को ध्यान में रखना होगा.

उन्होंने अपने एक्स अकाउंट पर लेख में लिखा– मेरे साल के आखिरी विचार. साल 2047 तक 9% वार्षिक वृद्धि के साथ 30 ट्रिलियन डॉलर जीडीपी वाला देश बनना भारत के सपनों के लिए फाइनेंशियल सेक्टर मॉडल होगा. भारत अब बचत करने वालों के देश से निवेशकों के देश की ओर बढ़ रहा है. बहुत जल्द बचतकर्ता/ऋणी और जारीकर्ता/निवेशक मॉडल के बीच संघर्ष भी देखने को मिलेगा. 80 के दशक के शुरुआत में, भारतीय बचत करने में ज़्यादा यकीन रखते थे. सोना और जमीन खरीदने में उनका बहुत कम विश्वास था. धीरे-धीरे बचतकर्ताओं ने बैंक जमा का कुछ हिस्सा, यूटीआई और एलआईसी में लगाना शुरू किया.

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क्यों बढ़ रहे हैं निवेशक?

यहां तक कि 90 के दशक में भी इक्विटी में निवेश करना “जुआ” जैसा माना जाता था. पूंजी ढूंढ़ रही कंपनियों ने विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) से संपर्क किया. FII ने कंपनियों की क्षमता देखी और पैसा लगाया. जबकि भारतीय बचतकर्ता निवेश करने से दूर ही रहे. कंपनियों ने कम प्रसिद्ध लक्जमबर्ग स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से पूंजी जुटाई. भारत का पूंजी बाजार निर्यात किया जा रहा था. हम में से कुछ ने इस घटना को सेबी के सामने उजागर किया. इससे 2000 के दशक की शुरुआत में निजी प्लेसमेंट मार्केट (QIP) की शुरुआत हुई. अब FII भारतीय बाजारों में भी खरीद सकते थे.

वैश्विक वित्तीय संकट के बाद भारतीय बचतकर्ताओं की बाजारों में रुचि बढ़ी. वह बचतकर्ता अब निवेश का आनंद ले रहा है. म्यूचुअल फंड प्लेटफॉर्म, कैश इक्विटी और डेरिवेटिव मार्केट, बीमा फंड, भारत में वैश्विक निजी इक्विटी, AIF जैसे अन्य प्लेटफॉर्म, इक्विटी के लिए कम कर व्यवस्था, सभी ने एक बचतकर्ता को निवेशक में बदल दिया है.

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मार्केट्स बबल्स से सावधान

कोटक ने चेतावनी देते हुए कहा कि हमें मार्केट्स बबल्स से सावधान रहना होगा. जापान के निक्कई इंडेक्स में पिछले 34 साल से आए ठहराव का हवाला देते हुए कहा कि साल 1989 में निक्केई इंडेक्स शिखर पर था. 34 साल बाद, लगभग शून्य ब्याज दर के साथ, निक्केई अभी भी अपने 1989 के शिखर से नीचे है. इसलिए हमें नीतियों, नियमों, शिक्षा और हाई क्वालिटी इन्वेस्टमेंट पर ज़ोर देना होगा, ताकि बुलबुले से बचा जा सके. इसके साथ ही उन्होंने डिविडेंड पर डबल टैक्सेशन की समीक्षा करने की अपील की है. साथ ही मार्केट ग्रोथ को बढ़ावा देने के लिए डेट और इक्विटी टैक्स रेट के बीच अंतर को कम करने की भी बात कही है.

जापान के अनुभव से सीखना चाहिए

कोटक का मानना है कि भारत को जापान के अनुभव से सीखना चाहिए और बुलबुले के जोखिमों को कम करने के लिए कदम उठाने चाहिए. उन्होंने कहा कि बड़ी कंपनियों को बैंकों से दूर रहना चाहिए और अपनी वित्तीय स्थिति को मजबूत करना चाहिए. उन्होंने सरकार से भी वित्तीय प्रणाली को मजबूत करने के लिए कदम उठाने का आग्रह किया.
कोटक की चेतावनी को गंभीरता से लिया जाना चाहिए. भारत की अर्थव्यवस्था अभी भी विकास के चरण में है और इसे किसी भी तरह के झटके का सामना करने की क्षमता नहीं है. अगर बुलबुले फटते हैं, तो इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को गंभीर नुकसान हो सकता है.

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भारत में, पिछले कुछ वर्षों में, स्टॉक बाजार और रियल एस्टेट बाजार में तेजी आई है. इस तेजी के कारण, कई कंपनियों ने अपनी संपत्तियों को बेचकर ऋण लिया और इसे शेयर बाजार या रियल एस्टेट में निवेश किया. अगर इन बाजारों में गिरावट आती है, तो इन कंपनियों को ऋण चुकाने में मुश्किल हो सकती है और वे दिवालिया हो सकती हैं. इससे भारतीय अर्थव्यवस्था में भी मंदी आ सकती है.

जापान में क्यों चरमराई अर्थव्यवस्था?

जापान में 1980 में अर्थव्यवस्था कई कारणों से चरमराई थी. 1980 के दशक की शुरुआत में, जापान में भूमि की कीमतों में तेज वृद्धि हुई. इस वृद्धि के कई कारण थे, जिनमें वित्तीय उदारीकरण, निम्न ब्याज दरें और निवेशकों की बढ़ती मांग शामिल थी. भूमि की कीमतों में वृद्धि ने कई अन्य क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा दिया, लेकिन यह एक बुलबुला भी था जो अंततः फट गया.

जापानी बैंकिंग उद्योग 1980 के दशक की शुरुआत में अस्थिर था. बैंकों ने कई असुरक्षित ऋण दिए थे, जिनमें से कई रियल एस्टेट उद्योग से जुड़े थे. जब भूमि की कीमतें गिरने लगीं, तो इन ऋणों की गुणवत्ता बिगड़ गई और बैंकिंग उद्योग को नुकसान पहुंचा. जापान की अर्थव्यवस्था वैश्विक आर्थिक रुझानों से भी काफी प्रभावित हुआ था. 1980 के दशक की शुरुआत में, वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी आई, जिससे जापान की अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचा.

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इन सभी कारणों से जापान की अर्थव्यवस्था चरमरा गई. भूमि की कीमतों में गिरावट, बैंकिंग उद्योग में संकट और वैश्विक आर्थिक मंदी ने जापानी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचाया. इस संकट को “जापानी मंदी” के रूप में जाना जाता है, और यह 1990 के दशक तक जारी रहा. जापान की अर्थव्यवस्था आज भी इस संकट से उबरने की कोशिश कर रही है. हालांकि, कुछ सुधार हुए हैं, और अर्थव्यवस्था अब धीमी गति से बढ़ रही है.

Last Updated on December 30, 2023 3:39 pm

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