क्या आपको नहीं लगता कि आपके विवेक का अपहरण कर लिया गया है? आपकी निजता को समाप्त कर,आपको एक झुंड का हिस्सा बना दिया गया है? अब आप सवाल नहीं करते बल्कि स्वयंसिद्ध जवाब लेकर सामने आते हैं.
यह किसने समझाया, स्थापित किया कि प्रधानमंत्री का काम सिर्फ प्रचार करना है? अगर बीजेपी का अध्यक्ष, यूपी में जीत के अगले दिन गुजरात में प्रचार करने जाता तो भी समझ आता. लेकिन प्रधानमंत्री?
सरकारी पैसे से बीजेपी का प्रचार करने वाला प्रधानमंत्री अपना काम छोड़कर बाकी सारा काम करते हैं. उनकी चुनावी सफलता अप्रत्याशित है लेकिन क्या यह पर्याप्त है?
बुनियादी सवाल तो यही है कि पीएम मोदी का मूल्यांकन किस आधार पर किया जाना चाहिए? एक प्रधानमंत्री के तौर पर या बीजेपी, संघ के प्रचारक के तौर पर?
मैं मानता हूं की प्रधानमंत्री का मूल्यांकन, प्रधानमंत्री के मानकों पर होना चाहिए. ठीक वैसे ही जैसे एक खिलाड़ी का मूल्यांकन खेल में उसके प्रदर्शन के आधार पर होता है.
20000 करोड़ का बैड लोन
आज ही “इंडियन एक्सप्रेस” की ख़बर है कि लॉकडाउन के दौरान 20000 करोड़ का बैड लोन छोटी कंपनियों पर हो गया. मतलब यह हुआ कि हजारों लोग कर्ज़ के बोझ तले दब चुके हैं.
इसका जवाब कौन देगा? प्रधानमंत्री या बीजेपी अध्यक्ष? या सरकारी खर्चे पर बीजेपी का प्रचार करने वाले प्रधानमंत्री?
सोचकर देखिए समझ आएगा कि भारतीय मानस मूलतः गुलाम है. हज़ार सालों की गुलामी की आदत जो है. इसका किसी पार्टी या विचारधारा से संबंध नहीं.
डरे हुए आदमी को कुछ नहीं सूझता
चिंतक और दार्शनिक जे कृष्णमूर्ति ने कहा था कि भय इतनी बड़ी चीज है की जब वह आपकी चेतना पर हावी हो जाता है तो कुछ दिखाई नहीं पड़ता.
भारत के सबसे घनी आबादी वाले और पिछड़े राज्यों में से एक उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जीत का राज़ इस छोटे से वाक्य में छिपा है.
बहुसंख्यक आबादी का भयादोहन, भगवा पार्टी की चुनावी रणनीति के केंद्र में रहा है शुरू से ही. जन्म से ही बीजेपी यही राजनीति करती आ रही है. कोई सकारात्मक एजेंडा ना था, ना है. इस चुनाव में भी बीजेपी की पूरी कैंपेन नकारात्मक थी.
सीजनल पॉलिटिक्स कर रही है कांग्रेस
अब बात कांग्रेस और गांधी’स की. कांग्रेस की निर्मम आलोचना की जानी चाहिए. खुद कांग्रेस को भी करना चाहिए. सीजनल पॉलिटिक्स नहीं चलेगी.
लेकिन सवाल यह है कि जो चल रहा है क्या उसे ही चलाना चाहिए? क्योंकि सत्ता तो उसी रास्ते पर चलकर मिल रही है.
क्या प्रियंका गांधी को कैराना से अपने चुनाव अभियान की शुरुआत करनी चाहिए थी? क्या राहुल गांधी को यह कहना चाहिए था कांग्रेस को वोट दो नहीं तो मुस्लिम गुंडागर्दी करेंगे?
मुसलमान करे तो गुंडागर्दी, भगवा पहन कर करें तो….
मुसलमानों की गुंडागर्दी, गुंडागर्दी है और भगवा पहने लोगों की गुंडागर्दी रासलीला है?
क्या कांग्रेस को चुनाव बीच धर्म संसद करवाना चाहिए था जिसमें नरसिंहानंद जैसे ढोंगी, भगवा पहनकर कत्लेआम का फरमान जारी करता?
क्या हिजाब विवाद पैदा करना चाहिए था?
क्या प्रधानमंत्री (जिसकी सुरक्षा के लिए हमारे आपके टैक्स के पैसे से साल भर में हज़ारों करोड़ खर्च किए जाते हैं) की तरह यह ढोंग करना चाहिए कि हमारी जान को खतरा है?
समाज सड़ कर कीचड़ बन गया है!
साफ बात यह है कि बीजेपी खुलेआम, भारतीय समाज की सभी फॉल्ट लाइंस का इस्तेमाल करती है. चाहे वह धर्म की हो या जाति की.
रूस, यूक्रेन के संदर्भ में बात करते हुए हाल फिलहाल भारतीय समाज की सड़ांध बहुत स्पष्ट तरीके से महसूस करता रहा. लिखता भी रहा हूं. बाबाजी कहते हुए मर ही गए की भारतीय समाज अंदर से सड़ा हुआ है.
उसी कीचड़ पर कमल खिला है. हैरान मत होइए.
जाति की राजनीति करने वाले अवसरवादी
जाति की राजनीति पर क्या ही कहूं. पिछले 15 सालों से वॉच कर रहा हूं. इसके विमर्शकार निहायत भ्रष्ट और अवसरवादी हैं. काडर और नेता तो हैं ही. यही वजह है मुल्क के सबसे पिछड़े तबके का एक बड़ा हिस्सा “हिंदू नाजीवाद” के खेमे में जा चुका है.
वरिष्ठ पत्रकार विश्वदीपक की फेसबुक वॉल से
Last Updated on March 12, 2022 1:19 pm