नीतीश कुमार के JDU अध्यक्ष बनने की 5 थ्योरी, जानें NDA में क्यों हो सकती है वापसी?

नीतीश कुमार फिर RJD छोड़ BJP के साथ जाएंगे? (फाइल फोटो)
नीतीश कुमार फिर RJD छोड़ BJP के साथ जाएंगे? (फाइल फोटो)

Nitish Kumar ready to return NDA: जनता दल यूनाइटेड (JDU) अध्यक्ष ललन सिंह ने आज अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया. अब बिहार सीएम नीतीश कुमार ख़ुद ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए हैं. ललन सिंह को हटाए जाने की खबर, एक हफ्ते से चल रही थी. साथ ही यह भी कयास लगाए जा रहे थे कि नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग होकर एनडीए के साथ जाएंगे. ललन सिंह ने JDU के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा क्यों दिया? इसको लेकर कई थ्योरी चल रही है. पहली थ्योरी यह है कि ललन सिंह, लालू यादव के बीच गुप्त समझौता हुआ था. जिसके मुताबिक ललन सिंह, JDU के 12 विधायकों को पार्टी से बाहर करने वाले थे. आगे चलकर यही 12 विधायक राष्ट्रीय जनता दल (RJD) को समर्थन देते और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, बिहार के सीएम बन जाते. ललन सिंह बतौर राष्ट्रीय अध्यक्ष अगर विधायकों को बाहर निकालते तो उनकी सदस्यता ख़त्म नहीं होती. इसके बदले में RJD ललन सिंह को मनोज झा की जगह राज्यसभा भेज देती. जिनका कार्यकाल अगले साल समाप्त हो रहा है.

दूसरी थ्योरी यह है कि नीतीश कुमार पिछले कुछ समय से ललन सिंह से काफी नाराज़ चल रहे हैं. इसके पीछे लालू यादव का क़रीबी होना तो वजह थी ही, भारतीय जनता पार्टी BJP के ख़िलाफ़ तल्ख टिप्पणी भी नीतीश कुमार को नागवार गुजर रहा था. अगस्त 2023 में जब मणिपुर हिंसा के मुद्दे को लेकर कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई संसद में अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए तो ललन सिंह ने केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला था. इस दौरान उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह पर भी काफ़ी तल्ख़ टिप्पणी की थी. माना जा रहा है कि नीतीश कुमार उसी समय से ललन सिंह के तेवर से नाराज़ चल रहे थे.

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तीसरी थ्योरी यह है कि नीतीश कुमार ख़ुद को अध्यक्ष बनाकर पार्टी को फूट से तो बचा ही लेंगे, साथ ही ‘इंडिया’ गठबंधन के सभी फ़ैसलों पर नज़दीकी निगाह रख सकेंगे. ऐसा कर नीतीश, ना केवल अपने तरीके से खुल कर फ़ैसला ले सकेंगे, बल्कि सभी हालातों पर अपना नियंत्रण रख सकेंगे. पार्टी की तरफ़ से इंडिया गठबंधन के घटक दलों के साथ सीटों के तालमेल और अन्य फैसलों के लिए नीतीश कुमार को अधिकृत किया गया है. पार्टी का यह फ़ैसला बताता है कि नीतीश पार्टी के सभी फ़ैसलों पर अपना पूर्ण नियंत्रण चाहते हैं. क्योंकि इससे पहले नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह पर भरोसा कर, उन्हें साल 2020 में राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था. तब पीएम मोदी के मंत्रिमंडल विस्तार के दौरान सीएम नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को बार्गेन करने के लिए भेजा. आरसीपी सिंह नीतीश कुमार का काम तो नहीं कर सके, लेकिन ख़ुद मंत्री बन गए. जिसके बाद नीतीश और आरसीपी सिंह के बीच संबंध खराब हो गए. नतीजतन आरसीपी ने BJP ज्वाइन कर जदयू की प्राथमिक सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया.

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चौथी थ्योरी के मुताबिक, नीतीश कुमार के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से पिछड़े दलों को और ज़्यादा मज़बूती से जोड़ा जा सकेगा. ललन सिंह (भूमिहार) जैसे सवर्ण नेता के अध्यक्ष पद पर होने की वजह से पहले यह संदेश पूरी तरह नहीं जा पा रहा था. इसके अलावा नीतीश कुमार के अध्यक्ष बनने से कभी उनके करीबियों में शामिल रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा और पूर्व सीएम जीतन राम मांझी को भी साथ लाने का रास्ता खुल सकता है. वैसे नीतीश कुमार के पार्टी अध्यक्ष बनते ही सबसे पहला फ़ैसला जाति आधारित जनगणना को लेकर देशभर में प्रचार प्रसार का लिया गया है. JDU नेता केसी त्यागी ने पार्टी की ओर से प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि नीतीश कुमार जनवरी महीने में जनजागरण के लिए निकलेंगे. इसकी शुरुआत झारखंड से होगी. जाति आधारित जनगणना, इंडिया गठबंधन का भी एजेंडा होगा.

पांचवी थ्योरी यह है कि नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन और एनडीए गठबंधन दोनों के लिए अपने दरवाजे खुले रखना चाहते हैं, ताकि परिस्थितिवश दोनों पर दबाव बनाया जा सके. इस बात को केसी त्यागी के बयान से भी समझा जा सकता है. उन्होंने कहा है कि राजनीति में कोई किसी का दुश्मन नहीं होता है. वहीं पीएम फ़ेस को लेकर केसी त्यागी ने कहा कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री इंडिया गठबंधन के विचारों के संयोजक हैं और इंडिया गठबंधन के विचारों के प्रधानमंत्री हैं. केसी त्यागी का बयान बताता है कि नीतीश BJP के लिए दरवाज़े खोलकर इंडिया महागठबंधन पर दबाव बनाने की भी राजनीति करेंगे.

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नीतीश की BJP में एंट्री क्यों?
जिस तरह मौजूदा दौर में प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी बड़ा चेहरा माने जाते हैं. ठीक उसी तरह बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार एक निर्विरोध चेहरा हैं, जिसको लेकर सभी जाति में सहमति बन सकती है. वैसे तो मौजूदा दौर में किसी भी राज्य में BJP के पास बड़ा चेहरा नहीं रह गया है. लेकिन बिहार में कभी भी BJP बड़ी पार्टी के तौर पर स्थापित नहीं हो पाई है. इस वजह से वहां कभी भी कोई नेता BJP का बड़ा चेहरा नहीं बन पाया. मौजूदा दौर में BJP को उसकी कमी खल रही है. दूसरा बिहार की राजनीति में जाति सबसे महत्वपूर्ण है. लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी, नीतीश कुमार की पार्टी JDU का अपना अपना जातिगत वोट बैंक है. लेकिन BJP बिहार में हमेशा नीतीश के साथ रहकर ही सत्ता में बनी रही है. ऐसे में BJP भी 2024 लोकसभा चुनाव के लिए कोई ख़तरे मोल नहीं लेना चाहेगी और सेफ़ खेलना चाहेगी.

उत्तर बिहार में महागठबंधन की तुलना में एनडीए का पलड़ा भारी है. यहां लोकसभा की कुल 12 सीटें हैं. वहीं मिथिलांचल में महागठबंधन के मुकाबले एनडीए अच्छी पोजिशन में है. यहां कुल 9 लोकसभा सीटें हैं. लेकिन सीमांचल और पूर्वी बिहार रीजन के चुनावी मुकाबले में महागठबंधन का पलड़ा भारी दिख रहा है. सीमांचल में कुल 7 लोकसभा सीटे हैं. वहीं मगध के इलाके में मामला फिफ्टी-फिफ्टी है. यहां 7 लोकसभा सीटे हैं. जबकि भोजपुर इलाके में 5 लोकसभा सीटें हैं. जहां महागठबंधन मजबूत है. इस तरह कुल 19 सीटों पर एनडीए की स्थिति डावांडोल है. BJP के लिए नीतीश कुमार के साथ आए बिना इन सीटों पर जीत हासिल करना मुश्किल है.

Last Updated on December 29, 2023 4:18 pm

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1 Comment

  1. कम शब्दों में काफ़ी कुछ समझा दिया है. बहुत सुंदर आलेख न्यूज़ मुनि…

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