Ustad Bismillah Khan: भारत रत्न मिलने के बाद जब फटी लुंगी में पहुंच गए थे इंटरव्यू देने

एक धनी व्यक्ति ने अपनी बेटी की शादी में शहनाई बजाने के लिए खां साहब को मोटी रकम ऑफर की. लेकिन खां साहब ने मना कर दिया और बोले, “मैं शहनाई शादी-ब्याह के लिए नहीं बजाता, ये मेरे लिए इबादत है. अगर बजाना है तो मंदिर में या गंगा के घाट पर बुलाओ.”

भारत रत्न बिस्मिल्लाह खान के पांच अनसुने क़िस्से
भारत रत्न बिस्मिल्लाह खान के पांच अनसुने क़िस्से

Ustad Bismillah Khan Birthday Special: उस्ताद बिस्मिल्लाह खां अपनी सादगी और बेबाकी के लिए उतने ही मशहूर थे जितने अपनी शहनाई के लिए. भारत रत्न जैसे सर्वोच्च सम्मान मिलने के बाद भी उनकी ज़िंदगी में कोई बनावटीपन नहीं आया. उनकी सादगी और ज़मीन से जुड़े स्वभाव के कई क़िस्से मशहूर हैं. जानते हैं उनके जीवन के पांच ऐसे ही रोचक और प्रेरक क़िस्से.

1. *फटी लुंगी में इंटरव्यू*: 2001 में जब उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया, एक पत्रकार उनके घर इंटरव्यू लेने पहुंचा. खां साहब उस वक़्त एक पुरानी, फटी हुई लुंगी और कुर्ता पहने हुए थे. पत्रकार ने हैरानी से पूछा, “आपको देश का सबसे बड़ा सम्मान मिला है, फिर भी आप ऐसे कपड़े पहनते हैं?” खां साहब हंसे और बोले, “अरे भाई, सम्मान मेरी शहनाई को मिला है, मेरी लुंगी को थोड़े ही! मैं तो वही हूं जो पहले था.”

2. *पान की कीमत पर बहस*: एक बार खां साहब बनारस की गलियों में पान खरीदने गए. पानवाले ने उनसे दो रुपये मांगे. खां साहब ने जेब टटोली और बोले, “अरे, एक रुपये का ही पान दो, दो रुपये तो मेरे पास हैं नहीं.” पानवाला उनकी सादगी देखकर हैरान रह गया और मुफ्त में पान दे दिया. बाद में लोगों ने बताया कि ये वही उस्ताद हैं जिनकी शहनाई दुनिया सुनती है, फिर भी वे एक रुपये के लिए बहस कर रहे थे.

3. *रेडियो पर नाराज़गी*: ऑल इंडिया रेडियो पर उनकी शहनाई की रिकॉर्डिंग के बाद एक अधिकारी ने उनसे कहा, “उस्ताद, अब आपकी धुन देश सुन सकेगा.” खां साहब नाराज़ हो गए और बोले, “मेरी शहनाई को कैद मत करो, ये तो गंगा की तरह बहने के लिए है.” उन्हें तकनीक से ज़्यादा अपनी कला की आज़ादी प्यारी थी, और वे रिकॉर्डिंग के बजाय लाइव बजाना पसंद करते थे.

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4. *ट्रेन में मुफ्त सफर का मज़ाक*: एक बार वे ट्रेन से सफर कर रहे थे और टीटी ने टिकट मांगा. खां साहब ने हंसते हुए कहा, “अरे भाई, मैं तो भारत रत्न हूं, क्या मुझे भी टिकट चाहिए?” टीटी भी उनकी सादगी पर हंस पड़ा और उन्हें बिना टिकट आगे जाने दिया. बाद में खां साहब ने खुद ही टिकट का पैसा किसी को भिजवा दिया, क्योंकि उन्हें मुफ्त में कुछ लेना पसंद नहीं था.

5. *शादी में शहनाई का इनकार*: एक धनी व्यक्ति ने अपनी बेटी की शादी में शहनाई बजाने के लिए खां साहब को मोटी रकम ऑफर की. लेकिन खां साहब ने मना कर दिया और बोले, “मैं शहनाई शादी-ब्याह के लिए नहीं बजाता, ये मेरे लिए इबादत है. अगर बजाना है तो मंदिर में या गंगा के घाट पर बुलाओ.” उनकी यह बात उनकी कला के प्रति समर्पण और सादगी को दर्शाती है.

ये क़िस्से बताते हैं कि बिस्मिल्लाह खां के लिए शोहरत और सम्मान का मतलब सिर्फ़ उनकी शहनाई की गूंज था, न कि सांसारिक दिखावा. उनकी ज़िंदगी सादगी और सच्चाई का एक अनमोल सबक है.

उस्ताद बिस्मिल्लाह खां ने गरीबी, सामाजिक दबाव और व्यक्तिगत संघर्षों के बीच भी अपनी कला को सर्वोपरि रखा.

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बिस्मिल्लाह खां का जन्म 21 मार्च, 1916 को बिहार के डुमरांव में एक संगीतकार परिवार में हुआ था. उनके दादा और पिता दोनों ही शहनाई वादक थे, और इस परंपरा को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी बिस्मिल्लाह पर थी. जब वे युवा थे और बनारस में अपनी कला को निखार रहे थे. उस समय उनकी आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी. घर में खाने के लिए पर्याप्त अनाज नहीं होता था, और कई बार उन्हें भूखे पेट सोना पड़ता था. फिर भी, वे हर सुबह गंगा किनारे शहनाई लेकर बैठ जाते और घंटों अभ्यास करते.

एक दिन, एक धनी सेठ ने उनकी शहनाई सुनी और प्रभावित होकर उन्हें अपने यहां नौकरी का प्रस्ताव दिया. सेठ ने कहा, “तुम मेरे यहां रहो, मैं तुम्हें हर महीने अच्छी तनख्वाह दूंगा. बस मेरे मेहमानों के लिए शहनाई बजाना.” यह प्रस्ताव किसी भी गरीब कलाकार के लिए सपने जैसा था. लेकिन बिस्मिल्लाह खां ने विनम्रता से मना कर दिया. उन्होंने कहा, “साहब, मैं आपकी बात समझता हूं, लेकिन मेरी शहनाई किसी के मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि ईश्वर की भक्ति और आत्मा की शांति के लिए बनी है. मैं इसे बेच नहीं सकता.”

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यह जवाब सुनकर सेठ हैरान रह गया, लेकिन उनकी निष्ठा को देखकर उसने बिना शर्त उनकी मदद करने का फैसला किया.

Last Updated on March 21, 2025 9:20 am

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